martedì 18 settembre 2018

आगरा तीन हिस्सों में बँटा हुआ है– एक मुग़ल

आगरा तीन हिस्सों में बँटा हुआ है– एक मुग़ल कालीन आगरा, दूसरा बृज भूमि और तीसरा ब्रिटिश आगरा. इन तीनों की अपनी अलग-अलग पहचान है. तीनों किसी न किसी धरोहर का हिस्सा हैं. इसलिए इस पूरे इलाके का संरक्षण अपने आप में बड़ी चुनौती है.
इतिहासकार मानते हैं कि अगर अंग्रेज़ों ने आगरा से काफी कुछ लूटा था तो उन्होंने ताज महल को काफी कुछ दिया भी है. मसलन, आज जो मुख्य द्वार है उससे अन्दर दाख़िल होते हे जो फ़व्वारे और रेतीले लाल पत्थर हैं, उनका निर्माण लार्ड कर्ज़न ने कराया था. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि अगर अंग्रेज़ न होते तो शायद ताज महल को काफी ज़्यादा नुकसान पहुंचा होता. उन्होंने 1920 के आस-पास से ही ताज महल और दूसरे धरोहरों का संरक्षण शुरू कर दिया था.
ऐसे कई शिलालेख मौजूद हैं जो इस बात को साबित करते हैं.
ताजगंज ताजमहल की सीमा के अंदर ही बसा हुआ है. ये वो इलाक़ा है जहां ताजमहल को तामीर करने वाले फ़नकार रहा करते थे. अब उनके वंशज यहाँ रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ताजगंज के रहने वाले हर व्यक्ति को जीता जागता धरोहर मान लिया है.
यहाँ के मकान और यहाँ के लोग – सभी ताज महल के जैसे ही धरोहर हैं लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस मान्यता से लोग इसलिए खुश नहीं हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि संरक्षण के नाम पर जो कानून बनाए गए हैं, बाबुओं ने वो सब सिर्फ ताजगंज पर थोप दिए हैं.
संदीप अरोड़ा इनमें से एक हैं. वो कहते हैं कि धरोहर के नाम पर अगर उनके घर का कमोड भी टूटता है तो वो उसे बिना इजाज़त बनवा नहीं सकते. वो डीजल के जेनरेटर नहीं लगा सकते जबकि आगरा शहर के बड़े होटलो में बड़े-बड़े डीज़ल जेनरेटर लगे हुए हैं.
वो कहते हैं, “सुप्रीम कोर्ट ने डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों पर पाबंदी लगाई है. मगर ताजगंज के लिए सुप्रीम कोर्ट ने परमिट की व्यवस्था करने को कहा है जिससे यहाँ रहने वालों को कोई तकलीफ़ नहीं हो. मगर हमने यातायात विभाग से जानकारी जुटाई तो पता चला कि यहाँ के लोगों को 170 परमिट दिए गए हैं जबकि प्रशासनिक अधिकारियों, नेताओं और उनके रिश्तेदारों को  से भी ज्यादा पास बाँटे गए हैं. वो डीज़ल की गाड़ियों से ताजमहल के दरवाज़े तक आते हैं जबकि ये प्रतिबंधित है.”
संदीप के अनुसार जो पर्यटक विदेश से आते हैं वो ज्यादा पैसे देते हैं मगर उन्हें सुविधा कुछ नहीं मिलती. जो तकलीफ़ वो उठाते हैं तो फिर दोबारा नहीं आने के प्रण के साथ लौट जाते हैं.
इसको बचाने के अलग-अलग तरीक़े सुझाए जाते हैं. कोई हेरिटेज सिटी बनाने से मामले का हल देखता है तो कोई यमुना में पानी के आ जाने और कचरा साफ़ करने से.
मगर इमारत को कैसे बचाया जाए इस पर अभी तक शोध चल रहा है. हालाँकि इसकी मरम्मत समय-समय पर होती रहती है. मगर जिस तरह से मरम्मत हो रही है वो सवाल खड़े करती है.
आगरा गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शम्सुद्दीन कहते हैं कि ताजमहल
कैसे बचेगा, ये ताजगंज का बच्चा-बच्चा जानता है. सिर्फ अधिकारी ही नहीं जान पाए हैं.
शम्सुद्दीन ने अपनी उम्र में पचास राष्ट्राध्यक्षों को ताज महल में बतौर गाइड घुमाया है जिसमे श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति जयवर्धने से लेकर इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू तक शामिल हैं.
उनका कहना है, “यहाँ पर एक बड़ी जमात है जिसको हम पच्चीकार कहकर बुलाते हैं. यही वो लोग हैं जिनके पूर्वजों ने ताजमहल के निर्माण के दौरान काम किया था. ये हस्तशिल्प कलाकार हैं जो वही नक्काशी करते हैं जो आपको ताजमहल में देखने को मिलेगी. ताज महल को बचाएगा कौन ? नस्ल ही तो बचाएगी. मगर सरकार ने इनकी कला को संरक्षित करने या फिर दूसरे लोगों को ये कला सिखाने की कोई पहल नहीं की है.”
इन तमाम चर्चाओं के बाद पुरातत्व वैज्ञानिक आरके दीक्षित कहते हैं कि जिस दिशा में ताजमहल का संरक्षण जा रहा है, अफ़सोस होगा कि आने वाली नस्लों के लिए कुछ नहीं बचेगा क्योंकि समय तेज़ी से निकल रहा है.
वर्ष 1984 से अदालत में लड़ने वाले वकील एमसी मेहता को नहीं लगता कि ताज महल को बचाने की दिशा में अब कुछ हो पाएगा. इसकी संभावनाएं अब नहीं के बराबर ही हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अब 22 साल हो गए हैं.

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