हम इस बात पर विचार कर रहे थे कि हमें
अस्पताल क्या ले जाना चाहिए और क्या नहीं. मैं उसे छोड़ने के लिए बस स्टॉप
तक गया. वो मुस्कुराई और उसने हाथ हिलाकर मुझे बाय कहा... लेकिन मुझे क्या
पता था कि वो अलविदा कह रही है."
बर्फ़ की सिल्ली पर रखे माँ और पत्नी के शरीर को देखकर सुरेश ये सब बताते हैं और फूट-फूटकर रोने लगते हैं.
सनिवारमपेटा निवासी सुरेश की पत्नी गर्भवती थी. उनके गर्भ में जुड़वा बच्चे पल रहे थे.
मंगलवार को तेलंगाना के जगतियाल ज़िले में हुए बस हादसे में उन्होंने सिर्फ़ अपनी पत्नी और अजन्मे जुड़वा बच्चों को नहीं खोया, उनकी माँ और सास भी इस हादसे में उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गये.
सुरेश खेतों में काम करते हैं. वो दिन भी रोज़ जैसा ही था. उन्होंने तय किया कि पहले खेत जायेंगे और जल्दी काम निपटाकर क़रीम नगर अस्पताल पहुँच जायेंगे, जहाँ उनकी पत्नी सुमनलता उनके जुड़वां बच्चों को जन्म देने वाली थीं.
पर उन्हें इस बात की ख़बर कहाँ थी कि आज के बाद वो न तो सुमनलता को देख पायेंगे और न ही उन बच्चों को जिनके आने का इंतज़ार वो पिछले 9 महीने से कर रहे थे. इस हादसे ने उन्हें बुरी तरह से तोड़ दिया है.
सुरेश के घर से कुछ ही दूरी पर एक घर और है, जहाँ मातम पसरा हुआ है.
इस परिवार ने बस हादसे में अपने तीन साल के बेटे हर्षवर्धन को खो दिया.
हर्ष और उनकी माँ लक्ष्मी सनिवारमपेटा से उस बस में सवार हुए थे. हर्ष को तेज़ बुख़ार था तो माँ उसे जगतियाल के अस्पताल लेकर जा रही थीं.
दुर्घटना में लक्ष्मी की पसलियाँ भी टूट गई हैं, पैर फ़्रैक्चर हो गया है और सिर पर चोटें आई हैं लेकिन ये चोटें बेटे को खोने के दर्द के आगे कुछ भी नहीं हैं.गतियाल ज़िले के पाँच गाँवों में मातम पसरा हुआ है.
मंगलवार को तेलंगाना राज्य परिवहन की एक बस खाई में गिर गई. इस बस हादसे में 58 लोगों की मौत हुई जबकि 20 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं.
इन पाँचों ही गाँवों का मंज़र मंगलवार से लगभग एक जैसा है. ज़्यादातर घरों के बाहर टेंट लगे हुए हैं. घरों से रोने की आवाज़ आ रही है. घरों के बाहर टेंट के नीचे बर्फ़ के बक्से रखे हुए हैं और गाँवों में एम्बुलेंस खड़ी हैं. किसी परिवार ने अपने घर के मुखिया को खो दिया है तो किसी ने अपने बच्चे को तो किसी ने अपनी पत्नी को.
देबुतमाइपल्ली के जी राजू रो-रोकर सिर्फ़ एक ही बात कहते हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता को कहा था कि वे उस दिन नहीं जाए लेकिन...मेरी माँ, मेरी छोटी बहन से मिलने जा रही थी और मेरे पिता अपने एक दोस्त से मिलने के लिए जगतियाल जा रहे थे. दोनों ने ये तय किया था कि अपने-अपने काम निपटाकर जगतियाल में मिलेंगे और उसके बाद रात के खाने के वक़्त तक घर लौट आएंगे. मैंने उनसे कहा भी था कि वे आज न जायें लेकिन वो चले गए. लौटे तो एंबुलेंस में..."
अपनी बहन को सांत्वना देते हुए वैंकैयम्मा कहते हैं, "रातोंरात हमारा गाँव कब्रिस्तान बन गया."
इस हादसे में वैंकैयम्मा की बहन ने अपने पति को खो दिया है.कैयम्मा की पोती लता एक आशा वर्कर हैं.
वो कहती हैं कि मैं और मेरी सहेलिया अक्सर कहा करती थीं कि जिस तरह ये बसें ओवरलोड होकर चलती हैं, उससे पक्का किसी न किसी दिन कोई बड़ा हादसा होगा और देखो वही हुआ.
उन्होंने कहा, "बस हमेशा अधिक भरी होती है. घाट रोड से जैसे ही बस मुड़ती है, डर लगता है कि कहीं कुछ हो न जाये. हममें से बहुत से लोगों ने ड्राइवर को कई बार कहा भी थी कि वो घाट रोड वाला रास्ता न ले और देखिए क्या हो गया."
जगतियाल बस डिपो के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ बस में क़रीब 100 लोग सफ़र कर रहे थे.
कोंडागट्टु को मंदिरों का शहर माना जाता है. घाट रोड के अंत में कई छोटी-छोटी दुकानें हैं, जिन पर पूजा-पाठ का सामान मिलता है.
हादसा घाट रोड के अंतिम मोड़ पर हुआ जो कि कोंडागट्टु बस स्टॉप से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर था.
शारीरिक रूप से विकलांग बी श्रीनिवास राव की भी एक छोटी सी दुकान इसी मोड़ पर है.
वो बताते हैं कि घटना के बाद वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आपातकालीन सेवा को फ़ोन करके घटना की जानकारी दी थी.
"एक ज़ोरदार धमाका हुआ. लोगों के रोने और चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी. मेरी पत्नी और बेटा बस के पीछे भागे. मैंने एमरजेंसी एंबुलेंस सर्विस को फ़ोन किया और अधिकारियों को इसके बारे में सूचित किया. मेरे बेटे और कुछ लोगों ने लोगों को बाहर निकालना शुरू कर दिया था."
श्रीनिवास राव ने बताया, "मेरा बेटा और उसके कुछ दोस्त एक लड़की को दौड़ते हुए लेकर आये. उस लड़की के हाथ से खून बह रहा था. इससे पहले कि हम उसे एंबुलेंस में पहुँचा पाते वो मर गई. उस लड़की की एक जुड़वां बहन भी थी जो पहले ही बस के भीतर अपनी जान गंवा चुकी थी."
लता की तरह राव भी बताते हैं कि अमूमन बसों में क्षमता से अधिक लोग सफ़र किया करते थे.
वो कहते हैं, "ये बस के जाने का रास्ता नहीं है. ये सड़क बहुत संकरी है. कुछ साल पहले ठीक इसी जगह एक ऑटो पलट गया था लेकिन कोई इसकी परवाह नहीं करता था. और अब देखो क्या हो गया. कितने लोग मारे गए."
लक्ष्मी इसी जगह पर किराने की दुकान चलाती है. वो कहती है कि हादसा इतना भयानक था कि उसे भूल पाना मुश्किल है.
"मैं घायलों को पानी पिला रही थी. इस तरह की दुर्घटना रुह कंपा देती है. सबकुछ मेरी आँखों के सामने हुआ. मैं अपनी दुकान पर ही बैठी हुई थी और देखते ही देखते बस उधर से आई और खाई में गिर गई. लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें अब भी मेरे कानों में गूंज रही है. सब कुछ मिनटों में हुआ."
देबुतमाइपल्ली, रामसागर और सनिवारमपेटा में कुछ और भी परिवार हैं जिन्होंने किसी न किसी अपने को खोया है.
लोगों से बात करने पर पता चलता है कि जितने लोग उस समय बस में सफ़र कर रहे थे उनमें से ज़्यादातर लोग मियादी बुख़ार का इलाज कराने अस्पताल जा रहे थे.
बर्फ़ की सिल्ली पर रखे माँ और पत्नी के शरीर को देखकर सुरेश ये सब बताते हैं और फूट-फूटकर रोने लगते हैं.
सनिवारमपेटा निवासी सुरेश की पत्नी गर्भवती थी. उनके गर्भ में जुड़वा बच्चे पल रहे थे.
मंगलवार को तेलंगाना के जगतियाल ज़िले में हुए बस हादसे में उन्होंने सिर्फ़ अपनी पत्नी और अजन्मे जुड़वा बच्चों को नहीं खोया, उनकी माँ और सास भी इस हादसे में उनसे हमेशा के लिए बिछड़ गये.
सुरेश खेतों में काम करते हैं. वो दिन भी रोज़ जैसा ही था. उन्होंने तय किया कि पहले खेत जायेंगे और जल्दी काम निपटाकर क़रीम नगर अस्पताल पहुँच जायेंगे, जहाँ उनकी पत्नी सुमनलता उनके जुड़वां बच्चों को जन्म देने वाली थीं.
पर उन्हें इस बात की ख़बर कहाँ थी कि आज के बाद वो न तो सुमनलता को देख पायेंगे और न ही उन बच्चों को जिनके आने का इंतज़ार वो पिछले 9 महीने से कर रहे थे. इस हादसे ने उन्हें बुरी तरह से तोड़ दिया है.
सुरेश के घर से कुछ ही दूरी पर एक घर और है, जहाँ मातम पसरा हुआ है.
इस परिवार ने बस हादसे में अपने तीन साल के बेटे हर्षवर्धन को खो दिया.
हर्ष और उनकी माँ लक्ष्मी सनिवारमपेटा से उस बस में सवार हुए थे. हर्ष को तेज़ बुख़ार था तो माँ उसे जगतियाल के अस्पताल लेकर जा रही थीं.
दुर्घटना में लक्ष्मी की पसलियाँ भी टूट गई हैं, पैर फ़्रैक्चर हो गया है और सिर पर चोटें आई हैं लेकिन ये चोटें बेटे को खोने के दर्द के आगे कुछ भी नहीं हैं.गतियाल ज़िले के पाँच गाँवों में मातम पसरा हुआ है.
मंगलवार को तेलंगाना राज्य परिवहन की एक बस खाई में गिर गई. इस बस हादसे में 58 लोगों की मौत हुई जबकि 20 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं.
इन पाँचों ही गाँवों का मंज़र मंगलवार से लगभग एक जैसा है. ज़्यादातर घरों के बाहर टेंट लगे हुए हैं. घरों से रोने की आवाज़ आ रही है. घरों के बाहर टेंट के नीचे बर्फ़ के बक्से रखे हुए हैं और गाँवों में एम्बुलेंस खड़ी हैं. किसी परिवार ने अपने घर के मुखिया को खो दिया है तो किसी ने अपने बच्चे को तो किसी ने अपनी पत्नी को.
देबुतमाइपल्ली के जी राजू रो-रोकर सिर्फ़ एक ही बात कहते हैं कि उन्होंने अपने माता-पिता को कहा था कि वे उस दिन नहीं जाए लेकिन...मेरी माँ, मेरी छोटी बहन से मिलने जा रही थी और मेरे पिता अपने एक दोस्त से मिलने के लिए जगतियाल जा रहे थे. दोनों ने ये तय किया था कि अपने-अपने काम निपटाकर जगतियाल में मिलेंगे और उसके बाद रात के खाने के वक़्त तक घर लौट आएंगे. मैंने उनसे कहा भी था कि वे आज न जायें लेकिन वो चले गए. लौटे तो एंबुलेंस में..."
अपनी बहन को सांत्वना देते हुए वैंकैयम्मा कहते हैं, "रातोंरात हमारा गाँव कब्रिस्तान बन गया."
इस हादसे में वैंकैयम्मा की बहन ने अपने पति को खो दिया है.कैयम्मा की पोती लता एक आशा वर्कर हैं.
वो कहती हैं कि मैं और मेरी सहेलिया अक्सर कहा करती थीं कि जिस तरह ये बसें ओवरलोड होकर चलती हैं, उससे पक्का किसी न किसी दिन कोई बड़ा हादसा होगा और देखो वही हुआ.
उन्होंने कहा, "बस हमेशा अधिक भरी होती है. घाट रोड से जैसे ही बस मुड़ती है, डर लगता है कि कहीं कुछ हो न जाये. हममें से बहुत से लोगों ने ड्राइवर को कई बार कहा भी थी कि वो घाट रोड वाला रास्ता न ले और देखिए क्या हो गया."
जगतियाल बस डिपो के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ बस में क़रीब 100 लोग सफ़र कर रहे थे.
कोंडागट्टु को मंदिरों का शहर माना जाता है. घाट रोड के अंत में कई छोटी-छोटी दुकानें हैं, जिन पर पूजा-पाठ का सामान मिलता है.
हादसा घाट रोड के अंतिम मोड़ पर हुआ जो कि कोंडागट्टु बस स्टॉप से सिर्फ़ 200 मीटर की दूरी पर था.
शारीरिक रूप से विकलांग बी श्रीनिवास राव की भी एक छोटी सी दुकान इसी मोड़ पर है.
वो बताते हैं कि घटना के बाद वही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आपातकालीन सेवा को फ़ोन करके घटना की जानकारी दी थी.
"एक ज़ोरदार धमाका हुआ. लोगों के रोने और चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी. मेरी पत्नी और बेटा बस के पीछे भागे. मैंने एमरजेंसी एंबुलेंस सर्विस को फ़ोन किया और अधिकारियों को इसके बारे में सूचित किया. मेरे बेटे और कुछ लोगों ने लोगों को बाहर निकालना शुरू कर दिया था."
श्रीनिवास राव ने बताया, "मेरा बेटा और उसके कुछ दोस्त एक लड़की को दौड़ते हुए लेकर आये. उस लड़की के हाथ से खून बह रहा था. इससे पहले कि हम उसे एंबुलेंस में पहुँचा पाते वो मर गई. उस लड़की की एक जुड़वां बहन भी थी जो पहले ही बस के भीतर अपनी जान गंवा चुकी थी."
लता की तरह राव भी बताते हैं कि अमूमन बसों में क्षमता से अधिक लोग सफ़र किया करते थे.
वो कहते हैं, "ये बस के जाने का रास्ता नहीं है. ये सड़क बहुत संकरी है. कुछ साल पहले ठीक इसी जगह एक ऑटो पलट गया था लेकिन कोई इसकी परवाह नहीं करता था. और अब देखो क्या हो गया. कितने लोग मारे गए."
लक्ष्मी इसी जगह पर किराने की दुकान चलाती है. वो कहती है कि हादसा इतना भयानक था कि उसे भूल पाना मुश्किल है.
"मैं घायलों को पानी पिला रही थी. इस तरह की दुर्घटना रुह कंपा देती है. सबकुछ मेरी आँखों के सामने हुआ. मैं अपनी दुकान पर ही बैठी हुई थी और देखते ही देखते बस उधर से आई और खाई में गिर गई. लोगों के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ें अब भी मेरे कानों में गूंज रही है. सब कुछ मिनटों में हुआ."
देबुतमाइपल्ली, रामसागर और सनिवारमपेटा में कुछ और भी परिवार हैं जिन्होंने किसी न किसी अपने को खोया है.
लोगों से बात करने पर पता चलता है कि जितने लोग उस समय बस में सफ़र कर रहे थे उनमें से ज़्यादातर लोग मियादी बुख़ार का इलाज कराने अस्पताल जा रहे थे.
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